आज के समय में जब लोगो के मन में नकारात्मकता बहुत अंदर तक अपना स्थान बना चुकी है, बहुत जरूरी हो गया है की हम सकारात्मकता ढूंढे (भले ही यह काम बहुत मुश्किल हो) , क्यूंकि ऐसे समय में जब हम पहले ही बहुत परेशान हैं तो हमें कोशिश करनी चाहिए की की नयी परेशानियों को टाला जाए, और ऐसा तभी हो सकता है जब हम किसी भी ऐसी बात का जो हमें बहुत ख़राब लग रही है उसका दूसरा पहलु समझने की कोशिश करें।
यह मैंने तब जाना जब मेरे साथ ये घटना हुई :-
कुछ समय पहले मेरा ट्रांसफर हुआ और मैं इस नए शहर और नए घर में रहने आया। मेरे नए घर के बालकनी से रोड दिखती है जहाँ कुछ स्कूल के बच्चे खड़े होक गाड़ियों (बाइक्स) को रोकने की कोशिश करते हुए दिखाई देते हैं। कुछ लोग रुकते हैं और कुछ नहीं।
सुबह चाय पीते हुए बालकनी में चला जाता हु और बच्चों को देखता रहता हु। कुछ दिन तक ऐसे ही चला फिर मैंने एक बात पे गौर किया की एक आदमी ऐसा है जो कभी भी नहीं रुकता बच्चो को लिफ्ट देने के लिए।
उसको देख मैंने खुद ही उसके बारे में सोच लिया की ये आदमी ठीक नहीं है, क्यूंकि जो दूसरो की मदद नहीं कर सकता वो अच्छा आदमी हो ही नहीं सकता।
- काश हमारा मन भी इस प्रकृति की तरह निस्छल हो जाए।
कुछ दिनों बाद मैं एक सुपर मार्किट में पेमेंट करने के लिए लाइन में था। थोड़ी देर बाद मैंने ध्यान दिया की मेरे आगे तो वही आदमी लाइन में लगा था जो सुबह बच्चो के लिए बाइक नहीं रोकता था । पता नहीं क्यों मेरा मन किया की उससे पूंछू की वह क्यों ऐसा करता है। पेमेंट की लाइन में ज्यादा टाइम लग रहा था तो मैंने उससे पूछ ही लिया। मेरा सवाल सुनके पहले तो उसने मुझे गौर से देखा जैसे सोच रहा ही की मुझे इस बात से क्या मतलब। फिर कुछ कुछ सेकण्ड्स के बाद उसने कारण बताया। उसका कारण जानने के बाद मुझे समझ आ गया की कभी भी एक ही तरफ की बात सोच के किसी के बारे में मन में उसकी छवि नहीं बनानी चाहिए। दरअशल उसने बताया की उसको भी इस शहर में आये ज्यादा समय नहीं हुआ था। शुरुआत में वह भी उन बच्चो को रुक के लिफ्ट देता था। लेकिन कुछ बच्चे ऐसे थे जो एक बार में दो बैठ जाते थे (जो की गलत है ), लेकिन क्यूंकि बाकी लोग भी बिठा लेते थे तो उसने भी ज्यादा ना-नुकुर नहीं की। कुछ दिन तक तो कोई दिक़्क़्क़त नहीं हुई, लेकिन एक दिन पुलिस ने उसे रुका के चालान कर दिया। बाकी ज्यादातर लोग क्यूंकि लोकल रेसिडेंट्स थे तो उनको ऐसे ही छोड़ दिया। उस व्यक्ति ने उस दिन बताया की उस दिन के बाद से उसने लिफ्ट देना छोड़ दिया।
तब मुझे समझ आया की मैं उसे कितना गलत समझ रहा था। उस दिन के बाद से मैंने मन में ठान लिया की आगे कोई भी बात हो मैं बिना उसकी दोनों पहलु जाने कभी कुछ नहीं करूँगा।
आज के दौर मैं अगर हम ये छोटो सी बात समझ ले तो नकारात्मकता कम हो जायेगी और लोग ज्यादा सकारात्मक हो के ज्यादा खुश रहेंगे।
यह मैंने तब जाना जब मेरे साथ ये घटना हुई :-
कुछ समय पहले मेरा ट्रांसफर हुआ और मैं इस नए शहर और नए घर में रहने आया। मेरे नए घर के बालकनी से रोड दिखती है जहाँ कुछ स्कूल के बच्चे खड़े होक गाड़ियों (बाइक्स) को रोकने की कोशिश करते हुए दिखाई देते हैं। कुछ लोग रुकते हैं और कुछ नहीं।
सुबह चाय पीते हुए बालकनी में चला जाता हु और बच्चों को देखता रहता हु। कुछ दिन तक ऐसे ही चला फिर मैंने एक बात पे गौर किया की एक आदमी ऐसा है जो कभी भी नहीं रुकता बच्चो को लिफ्ट देने के लिए।
उसको देख मैंने खुद ही उसके बारे में सोच लिया की ये आदमी ठीक नहीं है, क्यूंकि जो दूसरो की मदद नहीं कर सकता वो अच्छा आदमी हो ही नहीं सकता।
- काश हमारा मन भी इस प्रकृति की तरह निस्छल हो जाए।
कुछ दिनों बाद मैं एक सुपर मार्किट में पेमेंट करने के लिए लाइन में था। थोड़ी देर बाद मैंने ध्यान दिया की मेरे आगे तो वही आदमी लाइन में लगा था जो सुबह बच्चो के लिए बाइक नहीं रोकता था । पता नहीं क्यों मेरा मन किया की उससे पूंछू की वह क्यों ऐसा करता है। पेमेंट की लाइन में ज्यादा टाइम लग रहा था तो मैंने उससे पूछ ही लिया। मेरा सवाल सुनके पहले तो उसने मुझे गौर से देखा जैसे सोच रहा ही की मुझे इस बात से क्या मतलब। फिर कुछ कुछ सेकण्ड्स के बाद उसने कारण बताया। उसका कारण जानने के बाद मुझे समझ आ गया की कभी भी एक ही तरफ की बात सोच के किसी के बारे में मन में उसकी छवि नहीं बनानी चाहिए। दरअशल उसने बताया की उसको भी इस शहर में आये ज्यादा समय नहीं हुआ था। शुरुआत में वह भी उन बच्चो को रुक के लिफ्ट देता था। लेकिन कुछ बच्चे ऐसे थे जो एक बार में दो बैठ जाते थे (जो की गलत है ), लेकिन क्यूंकि बाकी लोग भी बिठा लेते थे तो उसने भी ज्यादा ना-नुकुर नहीं की। कुछ दिन तक तो कोई दिक़्क़्क़त नहीं हुई, लेकिन एक दिन पुलिस ने उसे रुका के चालान कर दिया। बाकी ज्यादातर लोग क्यूंकि लोकल रेसिडेंट्स थे तो उनको ऐसे ही छोड़ दिया। उस व्यक्ति ने उस दिन बताया की उस दिन के बाद से उसने लिफ्ट देना छोड़ दिया।
तब मुझे समझ आया की मैं उसे कितना गलत समझ रहा था। उस दिन के बाद से मैंने मन में ठान लिया की आगे कोई भी बात हो मैं बिना उसकी दोनों पहलु जाने कभी कुछ नहीं करूँगा।
आज के दौर मैं अगर हम ये छोटो सी बात समझ ले तो नकारात्मकता कम हो जायेगी और लोग ज्यादा सकारात्मक हो के ज्यादा खुश रहेंगे।
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